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11 Oct 2021 · 3 min read

रावण दहन की प्रासंगिकता

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जय माँ वाग्वादिनी
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अश्विन सुदी छठमी
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तारीख11अक्टूबर सन् 2021,दिन सोमवार
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अषाढ से भादों माह तक हुई बारिश के बाद क्वार मास का कृष्ण पक्ष पितृ तर्पण के लिए जाना जाता है।और सभी शुभ काज वर्जित ।तत्पश्चात एकम से पूर्णिमा तक का पक्ष शुक्ल होता है और नवरात्रि जैसे धार्मिक आस्था से जुड़ा यह पर्व मन की शिथिलता और नकारात्मकता को दूर कर तन-मन में शक्ति,सकारात्मकता, जोश ,उमंग आदि भरने हेतु संकल्पित है। अबोध बालिका विवाह से पूर्व कन्या होती है। चूंकि पहले बालविवाह होते थे अतः आयु अनुमान निश्चित था कि दस बारह वर्ष तक की बच्चियाँ कन्या रुप हैं।चूंकि मैया की अभ्यर्थना का पर्व है तो इन कन्याओं में देवी रुप मान अप्रत्यक्ष रुप से शक्ति की पूजा की गयी। नियम ,संयम के साथ इसका आध्यात्मिक महत्व भी है जो आज भुला दिया गया है।पहले नवरात्रियों में शक्ति आराधना ब्रह्चर्य व्रत के साथ होती थी ,पुरुष -स्त्री अलग अलग आराधना करते थे।चाहे वह पतिपत्नी ही क्यों न हों।परंतु बदलते वक्त के साथ आडंवर ,दिखाबा यहाँ भी प्रवेश कर गया और सामूहिक नृत्यगान के साथ कमोवेश वस्त्रों की मर्यादा भी त्याग की ओर अग्रसर है।यह तथ्य प्रसंगवश लिया।
नौ दिन माँ की आराधना के बाद आता है दशमी का दिन।जिसे सभी विजयादशमी का दिन मानते हैं।और प्रचलित है कि बुराई पर अच्छाई की जीत।
जबकि यह पर्व इसलिए मनाया जाता था कि हमने अपने आसुरी वृत्तियों पर विजय पाई, मन की नकारात्मकता पर व दस विभिन्न ऐसे भावों पर विजय पाई जो जीवन गति के साथ पारिवारिक और सामाजिक व्यवस्था हेतु हानिकारक थे।यहाँ रावण दहन का दशमी से कोई दूर दूर तक संबंध नहीं।
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त्रेतायुग में जब राम रावण का युद्ध हुआ तब न तो इन चार माहों में हुआ न दशमी को रावण का सँहार हुआ।ध्यान रहे हमने #वध शब्द नहीं लिया।
पद्मपुराण के पाताल खंड (सर्ग )के अनुसार राम-रावण युद्ध पौष शुक्ल द्वितीया से लेकर चैत्रकृष्ण चौदस यानि चतुर्दशी तक (87 दिन )चला ।बीच में 15दिन अलग अलग युद्ध बंदी के कारण शेष रहे 72दिन ..जिनमें यह निर्णायक युद्ध अनवरत चला था। और इस महासंग्राम में रावण की मृत्यु (संहार –लक्ष्मण के हाथों) चैत्र वदी (कृष्ण)चतुर्दशी को हुआ था #क्वार_सुदी_दशमी को नहीं।
फिर इस दिन रावण दहन का औचित्य किस कारण से?
त्रेतायुग में रावण संहार के बाद रावण दहन की प्रथा प्रारंभ नहीं हुई थी और न कोई प्रसंग ही बनता है दशमी को इस कृत्य का। फिर यह प्रथा कब से शुरु हुई और क्यों ?क्या मानसिकता रही इसे चालू करने के पीछे?
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अगर अनीति,स्त्री अपहरण ही मुख्य कारण है तो रावण के बाद अनेको महारावण इस भारत भू पर पैदा हो चुके हैं और हो रहे हैं जिन्होंने न केवल अनीति ,अनाचार के सभी मापदंड, स्तंभ खंडित किये अपितु अपहरण के बाद बलात्कार और साक्ष्य छिपाने के लिए हत्या जैसा जघन्य कांड भी किया।कभी उनको जलाने,दंडित करने का ख्याल नहीं आया ?क्या इन्हें बचाने के लिए जनमानस से हड़ताल ,आगजनी ,धरना मोर्चा जैसे देश घातक आंदोलन में साथ न दिया ?
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–मनोरमा जैन पाखी
#नोट –यहाँ रावण द्वारा सीता अपहरण का बिल्कुल भी समर्थन नहीं है ।गलत कृत्य गलत ही है। यहाँ विजयादशमी का मूल रूप जानने समझने और नवरात्रि की पूर्णाहुति पर ही ध्यान केन्द्रित है।सादर

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