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11 Oct 2021 · 1 min read

तन्हाई भी

तन्हाई भी
कभी कभी
खुद से घबराकर
दम तोड़ने लगती है
समझाना पड़ता है फिर
उसे किसी अनुभवी
व्यक्ति की तरह
बहलाना पड़ता है
हाथ में झुनझुना
पकड़ाकर एक
बच्चे की तरह
यह दिलासा देना और
यह भरोसा दिलाना पड़ता है कि
एक तुम नहीं
सबकी जिन्दगियों का यही
आलम है
होठों पर जैसे ही आ जाती है
उसके हल्की सी
मुस्कुराहट
तन्हाई को उसे
खुशहाल छोड़कर
वहां से
चाहे वह जहां जाना चाहे
जाना ही पड़ता है।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

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