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10 Oct 2021 · 1 min read

प्रेम की व्याकुल भावना

मैं कहाँ रहूँ ?
नहीं है मेरे लिए कोई आवास , .
क्योंकि इस संसार में ह्रदय नहीं ,
लोगों के पास ।

ह्रदय है कहाँ !
पत्थर है सीनों में।
इस पत्थर में से तो भावना भी ,
रुष्ट हो कर चली गयी है ।
ऐसे में अब मैं रहूं किसके पास ?

इस खंडहर में ,
नहीं! बिलकुल नहीं!
जहाँ मेरी भावना होगी ,
वही तो होगा मेरा आवास ।

भावना -विहीन ह्रदय ,
मेरे लिए खंडहर ही तो हुआ।
मैं प्रकृति से पूछता हूँ .
शायद उसे हो कुछ आभास ।

मगर यह क्या !,
इसे भी दानवों ने नष्ट कर दिया।
अब यह अवशेष क्या बताएँगे ,
नहीं बचा यहां न कोई एहसास ।

ओह!
मैं पशु- पक्षी औ जीव-जन्तुयों
की आंखों में देखता हूँ ,
उनकी आँखोंसे बह रही है ,
आंसू बनकर मेरी भावना।
ना जाने क्यों यह आंखें ,
इतनी क्यों उदास ।
निसंदेह ! दानव रूपी मनुष्य
ने दिया होगा इन्हें संत्रास ।

मैने अपनी भावना से कहा ,
मनुष्यों के मन में रह गया,
स्वार्थ ,घमंड ,लालच ,ईर्ष्या ,
द्वेष या वासना ।
हम यहां कलुषित न हो जाएं ,
नहीं रहा अब मनुष्य पर हमें,
विश्वास ।

चलो ! अब ईश्वर के चरणों में,
वहीं लें हम तुम अपना अंतिम
नि: श्वास ।
बहुत थक चुके हैं भटकते- भटकते ,
हमें मिलेगी शांति उनके पास ।

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