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7 Oct 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

बड़ा बेलौस मौसम है चलो इक काम करते हैं
तेरे मेरे सभी क़िस्से फ़ज़ा में आम करते हैं

उदासी हो कि हैरत हो, सितम हो या कि रुसवाई
ख़ुशी ग़म औ’ ये पागलपन तुम्हारे नाम करते हैं

सुनो माझी से कश्ती का हमें सौदा नहीं करना
हमें बस पार कर दे वो उसी का दाम करते हैं

सभी को राह में अक्सर ये छलते हैं बहानों से
यही कुछ सिरफ़िरे राही सफ़र बदनाम करते हैं

क़दम मेरे चले हैं ये तेरी जानिब ही बरसों से
थके हैं यूँ कि सोचा है अभी आराम करते हैं

सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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