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4 Oct 2021 · 2 min read

हिंसा

कोई कह रहा यह अपराधियों का है करतूत।
कुछ न कुछ तो दे ही रहा होगा सबूत।
जो हो रहा है‚है बहुत ही अपमानजनक।
आपत्ति भर कर देने तक सीमीत
व्यवस्धाओं के कृत्य
हैं अत्यन्त आपत्तिजनक।
हमारे नुमाईन्दे घड़ियाली आँसू बहायें ।
और हम सहम कर
उसके सम्मान में
आँसू आँखों में सोख लेंॐ
यह मुझे‚मेरे द्वारा दी गयी
हैजलाँजलि।

अब आओ कुछ न कुछ तो डालें कोख में।
आग या पानी।
अथवा सहिष्णुता की अपनी अ–मृत कहानी।

आवश्यकता है कि पृथ्वी को
देशों में‚नस्लों में‚रँगों में‚बुद्धिमतता के मापों में‚
शारीरिक क्षमताओं में‚पूर्वजों के अनाचारों में‚
यौनिक‚दैहिक‚भौतिक व्यभिचारों में न बाँटें।
एकात्मकता के स्वरूप में पृथ्वी को डालें
और मानवता के मधुर स्वाद में जीवन का उद्धेश्य
चखें और चाटें।

हम बड़े फिक्रमंद हैं हवा‚पानी‚जँगल‚गगन के परतों के लिए
किन्तु क्यों नहीं हैं उतने ही मानवीय संवेदनाओं के लिए?
वक्त है कि हम शैतानों को दिल से व दिमाग से नकारें।
सन्तानों को गुण्डे बनते देखकर सुरक्षा कवच ओढ़ लेने की
अपनी मानसिकता को धिक्कारें।
अपने अंदर के अहम् को सुख
बटोरने से धिक्कारें।

आखिर सामाजिक ईश्वर की खोज क्या आकर यहीं
होगी समाप्त?
हमें नेता चुनने की आवश्यकता पड़ जाती है क्यों?
नेता नहीं हमें तो चाहिए गुरू।
यदि नेता गुरूआई न कर पाये तो करेगा बेबफाई आज
और कल बेड़ा गर्क।
सिर्फ स्र्वग बताने वाले गुरू के बने चेले तो
सच मानिये ‚जीवन बना देगा वह नर्क।

हिंसा वह नहीं सिर्फ जो है देह पर दीखता।
मन पर किये गये प्रहार का जख्म भी है चीखता।
यौनाचार है सामाजिक नहीं व्यक्तिगत हिंसा।
पर‚इसे रोकना है सामाजिक संविधान को।
भ्रष्टाचार शत–प्रतिशत है सामाजिक हिंसा।
और इसे रोकना है व्यक्तिगत व्यवहार से।
अत्याचार मानवीय संवेदना के प्रति है हिंसा।
हर मानव द्वारा किया हुआ प्रतिकार सकता है इसे रोक।
अनाचार स्व के प्रति की जानेवाली हिंसा है।
सुशिक्षा और सृष्टि पर आस्था में है रोकने की क्षमता।

हिंसात्मक प्रतिद्वन्द्विता आसक्ति है लिप्सा में।
बड़प्पन की हिंसा ने हमेशा समाज को
किया है विभाजित।
या तो धर्म में या वर्ण में या नस्ल या लिंग में।
गौरव की हिंसा ने आहत।
गर्व की हिंसा से पूरी मानवता
होती रही है त्रस्त।

प्रत्येक धार्मिक समुदाय के पास
भविष्य का तात्कालिक
दस्तावेज है
और पूर्ण है
हम आज उसे बना रहे हैं अपूर्ण।
वास्तव में यह उनका
सामाजिक संविधान है।
जो सर्वजन हिताय‚सद्भावना‚
भ्रातृत्व‚ और सहअस्तित्व के साझा
अनुभव का उद्घोषणा करता हुआ
पुण्य और पवित्रता की पराकाष्ठा है।
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