जिंदगी
ये धूप ये छाँव
जिंदगी ऐसी ही तो है,
भोर में उगती है,
और साँझ को ढल जाती है।।
जिंदगी चलती है,
मचलती है, हंसती है,रोती है
जो ठहर जाय,
वो जिंदगी कहाँ होती है ..
भोर की मासूमियत,
दोपहर का सियानापन ।
एक दिन सब ढल जाएगा,
साँझ के अंधेरे में ।।
जिंदगी हरामी है या इंसान हरामी है,
कहीं जिंदगी हरामी है तो कहीं इंसान हरामी है..!!