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2 Oct 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

बहरे हज़ज मुसमन अख़रब
मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ महजूफ़
मुफ़ऊलु मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन

221/1221/1221/122

दिल की हर हसरत तुमसे शाद मिली है
जो आप मिले रुत हर आबाद मिली है/1

हर बज़्म बुलाए हमको मान देकर
लिखता हूँ तुम्हीं पर मुझको दाद मिली है/2

है शौक़ तुझे शोक भुलाने का लिखाकर
दिल से हमको भी यह फ़रियाद मिली है/3

ये ज़ाम शराबी अब दे तोड़ यही पर
प्यारी शब ये सुब्ह इत्तिहाद मिली है/4

वो याद कभी मिट न सकेगी दिल मन से
जिससे ये ज़मीं ‘प्रीतम’ आज़ाद मिली/5

# आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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