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2 Oct 2021 · 3 min read

सच्ची आस्था

✒️?जीवन की पाठशाला ??️

??विकारो के पांच गधे ??

✴एक महात्मा कहीं जा रहे थे। रास्ते में वो आराम करने के लिये रुके। एक पेड के नीचे लेट कर सो गये नींद में उन्होंने एक स्वप्न देखा कि… “वे रास्ते में जा रहे हैं ,और उन्हें एक सौदागर मिला, जो पांच गधों पर बड़ी- बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे।

➖✴फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया- “इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?”

✴सौदागर ने जवाब दिया- “इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं। उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं।

✴“ फकीर ने पूछा- “अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं!”

✴सौदागर ने कहा- “यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं इस पर अत्याचार की गठरी लदी है।

✴“ फकीर ने पूछा- “भला अत्याचार कौन खरीदेगा?”

✴ सौदागर ने कहा- “इसके खरीदार हैं राजा- महाराजा और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।

✴ फकीर ने पूछा-“इस दूसरी गठरी में क्या है?

✴ सौदागर बोला- “यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके खरीदार हैं पंडित और विद्वान।

✴तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग, जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है।

✴“ फकीर ने पूछा- “अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई?”

➖सौदागर ने कहा- “इसमें बेईमानी भरी है और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं। इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं।“

➖ फकीर ने पूछा- “अंतिम गधे पर क्या लदा है?”

➖सौदागर ने जवाब दिया- “इस गधे पर छल-कपट से भरी गठरी रखी है और इसकी मांग उन औरतों में बहुत ज्यादा है जिनके पास घर में कोई काम-धंधा नहीं हैं और जो छल-कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं। वे ही इसकी खरीदार हैं।

“✴ तभी महात्मा की नींद खुल गई।

✴इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर उन्हें मिल गया। सही अर्थों में कहें तो वह सौदागर स्वयं शैतान था, जो संसार में बुराइयाँ फैला रहा था। और उसके शिकार कमजोर मानसिकता के स्वार्थी लोग बनते हैं।

✴शैतान का शिकार बनने से बचने का एक ही उपाय है कि…ईश्वर पर सच्ची आस्था रखते हुवे अपने मन को ईश्वर का मंदिर बनाने का प्रयत्न किया जाय। ईश्वर को इससे मतलब नहीं कि कौन मंदिर गया, या किसने कितने वक्त तक पूजा की,

✴पर उन्हें इससे अवश्य मतलब होगा कि किसने अपने किन अवगुणों का त्याग कर किन गुणों का अपने जीवन में समावेश किया ,और उसके रचे संसार को कितना सजाया-संवारा।

?सुप्रभात?
स्वरचित एवं स्वमौलिक
“?विकास शर्मा’शिवाया ‘”?
जयपुर-राजस्थान

श्राद्ध पक्ष/पितृ पक्ष -परमपिता परमेश्वर से अरदास है की वो आपके अपने नातेदारों -रिश्तेदारों -मित्र -बंधू -बांधवों -एवं समस्त दिवंगत हो चुकी आत्माओं को उनके कर्मों के हिसाब से शांति दें -मुक्ति दें -मोक्ष दें ,उनका सकारात्मक स्नेह भरा आशीर्वाद आपके और आपके परिवार पर बना रहे …??

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