खुला आसमान
युगों – युगों से हम रावण का पुतला जलाते आये ।
क्या अब तक अपने भीतर के रावण को जला पाये ?
गर जलाते अपने भीतर के रावण तो अच्छा होता ।
हमारा देश स्वर्ग सा सुन्दर बन गया होता।
हर तरफ अमन और चैन का वातावरण होता।
जब हर पुरूष मर्यादा पुरुषोत्तम होता।
और देश की बेटियां / बहने सुरक्षित होती।
जब चाहे जहां कभी भी कहीं विचरण करती।
मगर अफसोस ! वोह रहती है डर – डर कर ,
क्या हम अब तक उन्हे उनका खुला आसमान दे सके ।