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28 Sep 2021 · 1 min read

मेरी कविताएँ

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रह जायेंगी मेरी कविताएँ
तुम्हें तुम्हारा अतीत दिलाने याद।
रहूँगा नहीं मैं, आत्मा या देह से।
छोड़ जाऊंगा निकालकर स्वत्व अपना
मेरे अस्तित्व में दफन है जो,नेह से।
पत्ते चरमराकर मर जायेंगे।
माटी में पिघल जायेंगे
उनके उत्सवों की कथाएँ।
मेरे शब्दों में पर,चित्रित रहेंगी वे।
झांककर देखता रहेगा अतीत उसका
मेरे गेह से।
अनन्तजीविता है भविष्य
अतीत भी होता नहीं कभी नष्ट।
यह तो वर्तमान है जो है
क्षणभंगुर,होता है त्वरित ध्वस्त।
दस्तक देता है समय
खरगोश की तरह दौडकर।
किन्तु,आदमी के वन में
कंटीले षड्यंत्रों से जाता है हार।
आदमी समय को जीता है
समय,आदमी को नहीं जी पाता
बहुत नुंचा,चुंथा है समय का संसार।
कविताएँ मन के कैनवास पर
उकेरे
समय और मनुष्य के चरित्र हैं।
ब्रह्मा के जय या पराजय का
अनूठे कथा चित्र हैं।
ये शब्द दिशा दें मनुष्य की ओर।
अक्षर की आकृति
तुम्हारे आकृतियों को गढ़ेंगे
आत्मसात् करना इन्हें
होकर आत्मविभोर।
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