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27 Sep 2021 · 1 min read

उम्र आ पहुंची आराम की ___ गजल / गीतिका

उम्र आ पहुंची आराम की, फिर भी तलाश काम की।
उदर पोषण करना ही पड़ेगा, फिक्र है इंतजाम की।।
रोजगार मिलता नहीं, हल कोई निकलता नहीं।
मजदूर है मजबूर है, दुनिया बची है केवल दाम की।।
जब से होश संभाला___ संकल्प भी ऐसा कर डाला।
भूखे रह लेंगे चाहे__ खाएंगे नहीं कभी हराम की।। सोचते हैं बचे जीवन में कभी दाग लगने नहीं देंगे।
बेदाग निकल जाएं जग से, फिक्र कहां हमें नाम की।।
हे नाथ तेरा रहे साथ सिर पर हो मेरे हमेशा हाथ।
बात यही तो मेरे लिए हमेशा रहेगी काम की।।
राजेश व्यास अनुनय

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