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24 Sep 2021 · 1 min read

मुलाकात की आस

ये बारिश का मौसम
जाना नहीं चाहता है शायद
वो भी मेरे महबूब से
ही मिलना चाहता है शायद।।

एक वो है की कभी
मिलने नहीं आ रहा है मुझे
इन्तज़ार करते हुए
अब बरसों हो गए है मुझे।।

मेरी नहीं तो कम से कम
इस बारिश की ही पुकार सुन लो
निकलो बाहर, छुपे हो कहां
है अर्ज़ मेरी अब तो मुझे चुन लो।।

मौसम है ये बहुत सुहाना
बस तुम्हारी ही कमी खल रही है
जाने क्यों तुम्हारे दिल में
आज बर्फ की चादर जम रही है।।

उठ रहे है जैसे धरा से
धुंध बनकर अरमान उसके
बरस रहे बनकर बादल
फिर इस धरा पर आंसू उसके।।

निकल रहे है आंसू मेरे भी
लेकिन उसे कोई फर्क पड़ता नहीं
दिल में मेरे है अरमान कई
जाने क्यों वो आगे बढ़ता नहीं।।

बारिश की इन बूंदों से
आज पिघल जायेगा वो भी
है यकीन इस बात का
आज मिलने आएगा वो भी।।

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