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21 Sep 2021 · 1 min read

हर मंज़र

आज हर मंजर सहमा क्यों है
लगी है भीड़ जाने कैसी शहर में तेरे
फिर भी हर शख़्स तन्हा क्यों है

ढूंढ रही है राहें तुझको
फिर भी तू दरबदर भटक रहा क्यों है

शोर है अनसुना चारों तरफ
फिर भी दिल खामोश क्यूं है
खींच रही सांसों को उलझी सी इक डोर क्यूं है

बातें है किस्से है फिर भी हर रास्ता चुप सा क्यूं है
चीख रहा हर कोई जोर से फिर भी हर शख्स बहरा क्यूं है।

रुक गई थककर सारी बिरादरी
फिर लगा यहां ये मज़मा क्यूं है।

“कविता चौहान”

स्वरचित

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