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20 Sep 2021 · 1 min read

किताबें कहना चाहती हैं

किताबें कहना चाहती हैं
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सच है किताबें कुछ कहना चाहती हैं,
अपने मन के भाव बाँटना चाहती हैं,
अपने अंदर समेटे
आखिर कब तक बेचैनी से
बचायें खुद को,
बस अपनी बेचैनी से
खुद को बचाना चाहती हैं।
कितना विचित्र है कि हमसे
कहकर हमें ही देना चाहती हैं,
यथार्थ बोध हमको बताना चाहती हैं।
अपनी दुविधा मिटाने की चाह में
वो हमसे भले कहना चाहती हैं,
पर सच तो ये है कि किताबें
हमें सँवारना, सँभालना चाहती हैं,
बस! इसीलिए ही तो
किताबें हमसे कुछ कहना चाहती हैं।
● सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित

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