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18 Sep 2021 · 1 min read

कहीं पर तमस कहीं है उजाला

**कहीं पर तमस कहीं उजाला**
***********गीत ***********

जमाने का यारों है दस्तूर निराला,
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।

जो चाहे जिसको वो मिलता नहीं,
जिसको मिलता वो चाहता नहीं,
प्रीत की रीत का रंग निराला।
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।

रिश्तों की उलझन में है उलझता,
सुलझाने से नहीं है सुलझता,
यह जीवन का है जाल निराला।
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।

निरोगी धन माया को तरसता,
धनवान निरोगी बदन तरसता,
ये सुख -दुख का है चक्र निराला।
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।

कड़कती धूप में छाँव न मिलती,
धुंध की चादर में धूप न खिलती,
धूप-छाँव का यह खेल निराला।
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।

पल में रंक बने पल में राजा,
कौन है नौकर कौन ख्वाजा,
मनसीरत कुदरत रंग निराला।
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।

जमाने का यारों है दस्तूर निराला,
कहीं पर तमस कहीं है उजाला।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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