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14 Sep 2021 · 1 min read

मिट्टी मेरे गाँव की

मिट्टी मेरे गाँव की, जब तन से लगती।
बचपन की हर याद, फिर से महक उठती।।
बिन बोले ही, सब कुछ याद दिलाती।
मुझको हर पल, फिर से पास बुलाती।।
पास खडे देखों, वो ऊँचे पेड़ खजूर।
बुलाने के लिए, कह रहा हैं जी हुजूर।।
जामुन, नीम, आम, बैठे हैं चुप कहाँ।
अब भी यूँ ही मुस्कुराते, खड़े खड़े वहाँ।।
कुएँ भी कह रहें हैं, बहुत हुआ इंतज़ार।
आओ फिर से कूदो, पानी हैं बेकरार।।
बदल गए घरों के स्वरुप,खत्म हुई दालान।
बैठकर बातें होती नहीं, झूठी लगे मुस्कान।।
पनघट अब सूने हुए, घर- घर पहुँचा पानी।
बच्चें मोबइल में व्यस्त, कौन सुने कहानी।।
चौक चौराहे सिकुड़ गए, बढ़ गयी लालसा।
छोड़ गाँव के घर, सड़क किनारे गाँव बसा।।
जग में कहीं भी रहें , दिल में बसता गाँव।
हर पल गाँव चलने को, रहते तैयार पाँव।।
—-जेपीएल

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