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10 Sep 2021 · 1 min read

दिल की हसीना बावली सी है

दिल की हसीना बावली सी है
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221 222 122 2 (ग़ज़ल)
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दिल की हसीना बावली सी है,
मदहोश करती लावनी सी है।

मिलती सजा है दूर रहने की,
जैसे शहर की छावनी सी है।

लावण्य मदहोशी भरा सा है,
पतली सलोनी सांवली सी है।

झोंका हवा का पास से गुजरे,
काली घटा सी बाबरी सी है।

लिख कर भरी गीतों-तरानों से,
गज़लों लिखी जो डायरी सी है।

है काफ़िया सा यार मनसीरत,
लफ्जों भरी वो शायरी सी है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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