Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
9 Sep 2021 · 1 min read

पुनर्पाठ

शीर्षक – पुनर्पाठ

विधा- कविता

संक्षिप्त परिचय- ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़ सीकर राजस्थान
मो. 9001321438
ईमेल – binwalrajeshkumar@gmail.com

भ्राता सम मित्र वर्षगांठ
हर जीवन का है पुनर्पाठ
नवजीवन की काँट-छाँट
भेद हृदय के बाँट-पाट
नित जीवन में हो वर्षगांठ।

व्रण पड़े जो भी जीवन में थे
नित -नित गहरे होने को थे
उलझे पथ की सरस सरिता
कलकल निनाद स्वर बबीता
सुखद संगिनी बन परिणिता

जीवन के कठोर धरातल पर
सत्य का घेरा जकड़ जाता
उधेड़बुन की सत्ता के फँदे
जीवन झकझोर किये जाता
जीवन अकर्म कहाँ टिक पाता

‘युवि’ सुकुमार जीवन-लता में
कुसुम बन खिला उपवन में
आशाओं से घन उमड़ आये
चिंता के घेरे जकड़े जाये
बन आये तो वर्षगांठ
यहीं जीवन का पुनर्पाठ।

दुषित हुआ मन-जन दथरथ
छूते न दोष जो हो समरथ
समरसता के पथ के साथी
लो निचोड़ जीवन का अमृत
सीख गये तो वर्षगांठ
पढ़ गये तो पुनर्पाठ।

Loading...