पलायन : रुचि या विवशता
दो टूक कलेजे के साथ ,
द्रवित ह्रदय ,
सजल नेत्र ,
कंपित संवेदनाएं ,
और विचारों का बोझ मस्तिष्क में लादे।
घायल स्वाभिमान ,
टूटे हुए सपने ,
बुझे हुए अरमानों की राख ,
आशा निराशाओं के जाल में उलझे ,
ना निभ सकने वाले अधूरे वायदे ।
भविष्य की चिंता में खोए ,
कुछ डरे ,कुछ सहमें ,कुछ सकुचाय ,
लबों पर असंतोष की अतृप्त प्यास लिए,
तकदीर के अप्रत्याशित खेलों से घबराए हुए।
कोई अपनी सत्ता,
कोई अपनी जिंदगी और
कोई अपनी घर गृहस्थी ,
गांव ,शहर और वतन छोड़ के जाने पर विवश है ।
स्वेच्छा से ,
रुचि से या खुशी से ,
नहीं चुनी गई ये पलायन की राह ।
इसकी गहन आवश्यकता आन पड़ी ।
विधाता ने ,
इनके प्रारब्ध ने ,
जो किया गया इनके लिए फैंसला ,
जिस पर इनका कोई अंकुश नहीं था,
इनका अधिकार भी नही था ।
कठपुतली की तरह जिधर इशारा मिला ,
उधर चल पड़े।
कोई दूसरे देश की और ,
कोई दूसरे शहर ,गांव की और ,
तो कोई मौत की और ।
पलायन कर बैठे ।