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8 Sep 2021 · 1 min read

उन्हें भी खिलौने चाहिए

सड़क किनारे ढारे में रहते हैं
तन पर पहने बहुत कम वस्त्र हैं उनके
जो है वो भी पुराने और मैले है
बिना शस्त्र ही, जीवन में लड़ाई है उनके।।

सुबह उठते ही संघर्ष शुरू हो जाता है
नहाने को भी उसे टब कहां नसीब होता है
कभी किसी नाले के नीचे नहा लेता है
मिले सबकुछ, सबका न ऐसा नसीब होता है।।

रोता रहता है दिनभर वो इंतज़ार में
वो भी मां की गोद में सुकुन ढूंढता है
मां तो उसकी काम करती है दिनभर
और वो मां की गोद के लिए तरसता रहता है।।

धूप हो, छांव हो, या फिर मौसम बारिश का
दिनभर घूमता है अपने साथियों के संग
सीख गया है वो बचाना खुद को मुश्किलों से
छोटे से जीवन में देख लिए उसने जीवन के रंग।।

खेलते हैं वो सड़क पर पड़े पुराने टायरों से
या फिर मिल जाए पुराना खिलौना कोई कहीं
किताबें होनी चाहिए जिन नन्हें नन्हें हाथों में
यहां तो सुध लेता नहीं उनकी आज कोई कहीं।।

इन्तज़ार में रहते है कि कब मां आयेगी उनकी
भोजन बनाकर, कब उन्हें खाना खिलाएगी
थक चुके है वो सारा दिन सड़कों पर घूमकर
खाना खिलाकर मां कब उनकी भूख मिटाएगी।।

है तो आखिर बच्चे ही है वो भी
उन्हें भी अब तो स्कूल चाहिए
खेलने का मन करता है उनका भी
उन्हें भी अब चन्द खिलौने चाहिए।।

Language: Hindi
7 Likes · 2 Comments · 430 Views
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