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7 Sep 2021 · 2 min read

व्यक्त करने हैं व्यथा

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वक्त नहीं बचा था व्यक्त करने व्यथा।
पीड़ा आसमान का ही बहुत था,
वह सुनाने में विभोर।
मुझे अवसर नहीं मिला।
इसलिए मृत्यु के साथ हो लिया।

उसके साथ न दर्द था,न पीड़ा,न दु:ख।
हँसता रहा सारा रास्ता मेरा मुर्दा मुख।

पीछे कुछ छूट गया था
पर,मैं उससे अभाव ग्रस्त नहीं था।
अब भविष्य की सोचत हुआ व्यस्त था।

पुनर्जन्म की कल्पनाओं में सारा दिन।
आपदाओं से निपटने के
तरीके खोजते सारा पल-छिन।

पिछला जन्म किसी पूर्व योजना के बगैर
अनायास हो गया था।
मात-पिता चुनने में
बाकी अनुप्रास रह गया था।

अब साक्षात्कार लूँगा ।
उसके पास भ्रष्टाचार का कितना अनुभव है
पूछूंगा ।
हत्या करने में हिचकिचाएगा तो नहीं।
उधार लेगा तो चुकाएगा तो नहीं।

उसके धन-धान्य का,ऐश्वर्य का पता पूछूंगा।
छिन,झपट लेने की क्षमता का विवरण माँगूँगा।
ऐसे ही अब जन्म नहीं ले लूँगा।

जन्म लेने के पूर्व
शिशु की इच्छा पूछे जाने की परिपाटी
करूंगा प्रचलित।
पैदा कर धूल में पटक दिये जाने के विरोध में
सारे शिशुओं को आंदोलित।

मज़ाक लिया है समझ पैदा करना शिशु।
असुरक्षा की भावना लेकर पैदा होने को
बनाऊँगा ‘इशू’।

बीती जिंदगी में बाकी रह गया था
मेरा अहंकार करना।
उचित देखभाल के कारण लोगों का
बलात्कार करना।

पूछूंगा भावी उम्मीदवार से राजनैतिक रसूख।
बता दूंगा, मेरी उच्छृंखलता में न होने दे
कोई भूल-चूक।

जन्म के लिए होने से पूर्व प्रस्तुत,
पूछ लूँगा संस्कार की कथा अवश्य।

बौद्धिक,आर्थिक या आध्यात्मिक संस्कार देगा?
या असंस्कृत छोड़ देगा?

आध्यात्मिक अमान्य है।
बौद्धिक में माथापच्ची है ज्यादा
आर्थिक दिये जाने का संकल्प करेगा तो
मुझे तो आदमी बनना सामान्य है।

अध्यात्मिकता में पुरोहित के डरावने भाग्य-कथा
और
ईश्वर के आश्वासनों से नपुंसक रहूँगा।
बौद्धिकता के कारण कल्याण सबका सोचता हुआ
खुद का,बिसार डालूँगा।

हम शिशु रोने के लिए पैदा नहीं होते।
अपना भविष्य खोने के लिए नहीं होते।
लागू करो नियंत्रण।
सरकारें भी करे मंथन।
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