मैं आपका ज़मीर बोल रहा हूं …
जी हां !मैं आपका ज़मीर हूं ,
आपसे ही मैं बात कर रहा हूं ।
क्या सुन रहे हो आप ?
क्या आप मुझे जानते हैं ,
मेरी आवाज़ पहचानते हैं?
कहीं भूल तो नहीं गए मुझे आप ?
रहता तो मैं आपके भीतर हूं ,
मगर फिर भी अजनबी हूं ।
और कितने बेखबर है आप ?
हमें मिले जमाना जो हो गया,
हमारी मुलाकात को भुला दिया गया ,
किस तरह के इंसान है आप ?
बाहरी दुनिया को तो देखते हो ,
कभी अंदर भी झांक लिया करते हो ?
जो है आपके अंदर उसे देखते हो आप ?
गैरों के ईमान की बात करते हो ,
कभी अपने ईमान की भी पूछते हो ,
उसे तो सदा सुला कर रखते है आप।
गैरों पर एक उंगली उठाते तो हो ,
बाकी तीन उंगलियां आपकी ओर है ?
क्या उनका इशारा देख रहे हो आप ?
बहुत आसान है गैरों पर इल्जाम लगाना ,
जरा अपना गिरेबान भी एक नजर डालना ।
मैं आइना दिखाना चाहता हूं आपको ,
क्या देखना चाहेंगे आप ?