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5 Sep 2021 · 1 min read

गुरु

न तुम होते अगर पथ में,
बिखरता मैं चला जाता।
दिये की लौ नहीं जलती,
उजाला दूर हो जाता।।

तुम्हारे ज्ञान की गंगा,
तुम्हारे स्नेह की धारा।
भिगोती यदि नहीं मुझको,
मैं अपनापन नहीं पाता।।

अंधेरा, ज़िन्दगी के मोड़ पर
करता रहा स्वागत।
तुम्हीं आये वहाँ, पथ को
मेरे आलोक से भरने।।

मैं गिरता ही रहा हरदम,
राह में ठोकरें खा कर।
मगर हर बार ही मुझको
सहारा है दिया तुमने।।

तुम्हारे पूज्य चरणों की
ज़रा सी धूल जो मिलती।
समझता मैं उसे चन्दन,
उठाकर शीश पर लाता।।

न तुम आते अगर, श्रीकृष्ण
बन कर ज्ञान बतलाने।
‘असीम’ अपने महा जीवन-
समर में हार ही जाता।।

✍️ शैलेन्द्र ‘असीम’

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 483 Views
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