देशभक्त महंगाई डायन
गरीबों की थाली आईने की तरह चमकने लगी है,
सुखी रोटी है इसमें और सब्जी से गंदी नही है ।।
लोगों के निकले पेट अब बिना दवा के अंदर हो रहे,
महंगाई तेरे इलाज के कारनामे मशहूर हो रहे ।।
खुश है देशभक्त और फिरकापरस्त लोग,
गरीबों के बटुए भी देश-धर्म पर कुर्बान हो रहे ।।
इंकलाब की मशाल अब हर तरफ जलने लगी है,
जिंदा रहो या मरो जेब के माल की खैर नही है ।।
अब देश खून नही विकास के लिए राजस्व मांग रहा ।
तिजोरी खाली करो माँ के लाल, देश धन की कुर्बानी चाह रहा।।
मंहगाई पर हंसते हुए तुम खेल जाओ जान से
शहीद हो जाओ और तिजोरी भर जाओ बेनाम से।।
महंगाई नही, ये परीक्षा है देशभक्ति की शक्ति की,
ना निकलेगी चीख सच्चे देशभक्त के कंठ से आह की।।
महंगाई और टैक्स से देश का सुरक्षा कवच बनाना है,
बन रही है योजना कई गरीबों को दाधीच बनाना है।।
जनमेजय के इस यज्ञ में नही देगा जो आहुति,
उस सर्प का इस देश मे नही, पाक में ठिकाना है ।।
जलते रहो नफ़रत की आग में देश के लिए सदां,
मैं बजा रहा हूँ मधुर बांसुरी, नीरो की तरह।।