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31 Aug 2021 · 1 min read

कहाँ पर रहते हो

कहने को दिल बसते हो
पर तुम कहाँ पर रहते हो
सागर जैसी गहराई तुम्हार
जिसमें लहरों बन मैं उठती हूँ
बार बार छू कर तुमको
न जाने क्यूँ मचला करती हूँ
सपने सुहाने दिखला कर
मन विचलित करते हो

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