Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
29 Aug 2021 · 1 min read

यही अभिलाषा है मन की ...( श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष)

यही अभिलाषा है मन की ,
हे कान्हा ! तेरा सानिध्य पायूं ।
द्वापर युग में जन्म लेकर,
तेरे साक्षात दर्शन हर पल पायुँ।

तू पुनः अवतार ले छोटा सा कान्हा बनकर,
मैं तेरी यशोदा मैया बन जायुं ।
तुझे प्यार कर ,मनुहार कर ,
अपने हाथों से माखन मिश्री खिलायूं।

या तेरे बाल सखाओं में मिलकर,
मटकी फोड़ू ,माखन चुरायुं।
और गायों के संग वन में तेरे संग,
विचरण करूं ,शरारतें करूं ।

या फिर गोपी बनकर तुझे छेडूं,
कभी तुझे प्यार से माखन खिलायूँ ,
तो कभी छछिया भर छाछ पर ,
तुझे नचायूं और खुद भी नाचूं ।

मैं तेरी बाल लीलाओं के हर रूप ,
को निहारूं,तूझपर वारी वारी जायूं।
तेरे सुन्दर सलोने रूप को मैं ,
जी भर कर आंखों में उतार लूं ।

बस! यही तमन्ना है जीवन की ,
किसी तरह तेरा सानिध्य पायुं ,
और तुझपर निहाल हो जायूं।

Loading...