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28 Aug 2021 · 1 min read

बेवज़ह...

ग़म-ए-शाम इसकदर तन्हाँ कर जाती है मुझे
बेवक़्त, बेवज़ह, तेरी बेख़्याली सताती है मुझे…

जाओ कह दो, उस बेपीर से जाकर मेरा हाल
ओ बेक़दर, तेरी बेरूखी, यूँ बहलाती है मुझे…

लाख भूलाना चाहा, ख़ुलुस-ए-दिल ‘अर्पिता ‘
मग़र ये कोशिशें बारहॉं, आज़माती है मुझे…

-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
©®

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