Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
26 Aug 2021 · 1 min read

गरम है बाजार!

शीर्षक – गरम है बाजार!

विधा- व्यंग्य काव्य

परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो.रघुनाथगढ़,सीकर राजस्थान
मो. 9001321438

गरम है बाजार आज शहर के
उड़ी है अफवाह मेरे मरने की।
तमाम कोशिशों के बावजूद
अफवाहों के दौर जारी थे।
मैंने कहा मैं जिंदा हूँ जनाब
लोग पहचानते न थे मुझकों।
शामिल हो गया जुलूस में मैं,
तोड़फोड़ ताबड़तोड
जोर-शोर छोर-छोर।
उपद्रव ही लक्ष्य मात्र
थक गया दिमाग बैठें-बैठें
सुस्त पड़ गया शरीर
नई ऊर्जा के लिए जरूरी
अफवाह और तोड़फोड़
राजनीति भी चमकनी चाहिए!
न मरा तो मार देंगे हमकों
फिर मिलेगी जोरदार
ताबड़तोड़ सांत्वना।
मुआवजा और नौकरी
मांग पकड़ेगी जोर
मैं समझ गया राजनीति।

Loading...