Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
20 Aug 2021 · 2 min read

लव कुश

अश्वमेध यज्ञ राम ने ठाना था,
सब ने शुभ औ मंगल माना था।
अश्व यज्ञ का चला भ्रमण के लिए,
सबके नमन और समर्पण के लिए।

जो इसके आगे झुक जायेगा,
राम की शरण वो पायेगा।
जो पकड़ने का साहस करेगा,
रण में वो मारा जायेगा।

घोड़ा घूमकर आश्रम में आया,
साथ अपने युद्ध की चुनौती लाया।
लव कुश चुनौती स्वीकार किए,
लड़ने को भाई दोनों तैयार हुए।

जो राम युद्ध को यहां आयेंगे,
थोड़ा पौरूष हम भी दिखलाएंगे।
जो जीत गए हमसे राजन,
अश्व उनका सहर्ष लौटाएंगे।
कुछ प्रश्न मन में जो कौंध रहे,
उनके उत्तर भी उनसे पाएंगे।

शत्रुघ्न घोड़ा छुड़ाने आए,
बालक समझ समझाने आए।
युद्ध भीषण करें दोनो भाई,
काली घटा थी नभ में छाई।
पौरूष का प्रभाव दिखाने लगे,
शत्रुघ्न को रण में डराने लगे।
वीरों ने रण कौशल दिखा दिया
शत्रुघ्न को युद्ध में हरा दिया।

लक्ष्मण आए क्रोध में तन कर,
घोड़ा छुड़ाने का प्रण कर।
सप्रेम लव कुश को पहले समझाए,
अपने क्रोध का भय भी दिखलाए।
दोनो भाई तनिक भी ना डोले,
कड़वे बोल लखन से जब बोले।
हुआ युद्ध भयंकर तब वीरों में,
भाल कृपाण धनुष औ तीरों में।
लक्ष्मण मूर्छित हुए, रहे भरमाए,
रण जीतकर दोनों भाई मुस्काए ।

समाचार जब रघुनंदन पाए,
सुग्रीव हनुमत संग भरत पठाये
भरत के समुख लव कुश आए,
भरत अपना परिचय बतलाए।
नाम भरत का सुन दोनो भाई ,
करबद्ध करने लगे प्रणाम।
सुग्रीव और हनुमान जी को भी
दोनो ने दिया बहुत सम्मान।

बोले भरत हठ त्यागो भैया,
अश्व ये विशेष कार्य का है।
लव कुश चुनौती दिखाकर,
बोले रण में जो राम आयेंगे।
युद्ध में हम दोनो को हराएंगे
घोड़ा उनको तभी लौटाएंगे।
होने लगा युद्ध फिर इकबार,
गदा चले, कभी चले तलवार।
पराजित हुए भरत भी रण में,
बंदी बने हनुमत आज वन में।

अंत में राम स्वयं ही आए,
देख बालक को मुस्काए।
बोले प्रभु प्रेम भरी वाणी,
छोड़ो हठ और ये मनमानी।
यज्ञ को घोड़ा है ये
तुम्हारे भला किस काम का।
लव कुश बोले राजा जी,
निशानी है ये अभिमान का।

चुनौती आपकी हमने स्वीकारी है,
रण में लड़ना अब नियति हमारी है।
हमे पराजित कर आप इसे ले जाएं,
या उचित समझें तो दंड भी दे जाएं।
वैसे भी निर्दोषों के दंड का विधान है,
अयोध्या का कुछ ऐसा संविधान है।

बोले राम अवध में निर्दोष,
कोई कभी दंड नहीं है पाया।
लव कुश बोले तो सीता को किस,
अपराध का दंड आपने सुनाया।
मौन हुए राम सुन कर ये बात,
हुआ हृदय में जैसे कोई आघात।

बाल्मिकी ऋषि तब वहां आए,
लव कुश को आकर समझाए।
लव कुश ने राम को प्रणाम किया,
अश्व छुड़ाकर उनको सौंप दिया ।
लौटे राम तब यज्ञ का घोड़ा लेकर,
सीता का ध्यान मन में संजोकर।

Loading...