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19 Aug 2021 · 1 min read

पन्थ

व्यथाएँ विस्तृत सरोवर में अलङ्गित
चान्दनी – सी धार विलीन करती मुझमें
रिमझिम – रिमझिम पाहुन वल तड़ित
तरि अपार में अभेद्य उऋण कली

करिल कान्ति तनी में दीवा विस्मित
नीरज नीड़़ में परिहित विभूति विरद
सखी मैं सहर के दविज स्वर मैं
अनुरक्त से बढ़ चला अनभिज्ञ अस्त

चिन्मय चेतन क्षणिक ज्योत्स्ना
तरुण द्रुम बहुरि तिमिर जरा
झोपड़ी छाँह बन चला निरुद्विग्न मैं
पाश में नहीं निस्तब्ध – सी निरापद

शबनम स्नेहिल अम्लान रणभेरी छरिया
वृत्ति व्याधि वल्कल विटप के विह्वल
मजार मेरी विरुदावली इजहार के लहराईं
सौंह के अर्सा में आरोहन से चली बयार

चिरायँध नहीं विभूति सतदल के कलित गात
व्योम विहार बसुधा जीवन के नतशीर प्राण
डारि देहि तम भोर सुरम्य वरित वसन्त
उद्यत्त जनमत जर्रा से पृथु पन्थ के जवाँ

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