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19 Aug 2021 · 1 min read

तुम

चला कर बाण नजरों के
जरा सी हार कर दो तुम
मगर अब छोड़ मँझधारे
न ऐसे मार कर दो तुम

सँवर कर मैं रहूँ तेरे लिए
जो हर सुबह औ शामें
जरा सी देर को आकर
अभी दीदार कर दो तुम

बहक जाना नहीं फिर से
जहाँ की बात में आकर
बना अपना मुझे अब तो
सदा को सार कर दो तुम

बढ़ा कर प्रेम पींगे साथ
मेरे आज मिल हमसे
हमेशा के लिए ही जिन्दगी
इकरार कर दो तुम

करूँ मैं इन्तजारे जब
मगर आयें नहीं अब तक
पिया आकर कलम से
इजहार कर दो तुम

डॉ मधु त्रिवेदी

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