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18 Aug 2021 · 1 min read

पत्थर

राह पाषाण अब तक धरा रह गया
मन्दिरों में वही बन दुआ रह गया
मार ठोकर बढ़ा जा रहा आदमी
रोज देवालयों जा झुका रह गया
मान भगवां जिसे पूजता आदमी
नेमतें जो मिली तो नफा रह गया

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