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10 Aug 2021 · 1 min read

पङ्ख

तितली रानी घूमड़ घूमड़कर
कहाँ जा रही कौन जाने ?
कभी इधर गुम होती कभी उधर
न जाने कहाँ वों चली रङ्ग मनाने

कल – कल कलित पुष्प आँगन में
पन्थ – पन्थ पङ्ख क्यों बिखेरती
छोटी – छोटी रङ्ग – बिरङ्गी शहजादी
सौन्दर्य – सी क्यारी रङ्ग फैलाएँ

बढ़े चलो उस गुञ्जित किरणों में
मधुरस मधुमय कलियों में त्यागी
मनचला प्याला उन्माद लिए सब
महफ़िल श्रृंगार करती किनको अलङ्गित !

यम भी साक़ी मतवाला हूँ बन चला
राम नाम सत्य की गूँज नहीं
ध्वनि प्रतिबिम्ब जयघोष में विलीन
पथिक पन्थ में है अँधरों की ज्वाला

उड़ – उड़ छायी क्षितिज किरणों में
बढ़ चली अनुपम गिरी मधु सिन्धु
असीम नीहार तीर सरसी प्रभा
देवदूत परेवा ईश पैग़ाम भव में

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