पङ्क्ति
मत रुक बस एक पैगाम दे दे मुझे
लौट आ मेरी आँखों के तन्हां
मञ्ज़िल का नहीं वों अभी पथिक दस्तूर
न जाने कैद क्यों हो चला जग से ?
अपने रन्ध्रों कसाव से मुरझा रहा कबसे
तमाशा भरी दुनिया में जग से मैं वीरान
विवर हो चला अन्तर्ध्वनि भयभीत के
व्रज हुँकार कोऊ थाम ले झिलमिल
बौछारें टूट पड़ी दुर्मुख तेरी गर्जन
मैं विचलित गिरहें उँड़ेल दी मुझे
जग निहारी दारिद – सी दुनी असहेहु
विप्लव रव गुलशनें जीमूत आलम
अञ्जुमने मय के आबो – ताब आशिक
हुस्नो ईश्क में फ़िदा फितरत मदहोश
अँधड़ – सी नमित पङ्क्ति कजरारे न्यौछावर
नौरस भव गम आँशू कर रहे अदब
स्नेह – सुरा मन्दिर में ध्वनित गात
मेरी उद्गार उर में उन्माद राग
विकल शिथिल तन में विषाद विह्वलता
निःशेष खण्डहर – सी किनारों में पला
त्रियामा पन्थ विधु कौमुदी ओझल
म्यान – सी शून्य सारगर्भित निराकार
उदयाञ्चल में बढ़ चला उऋण सन्सार
पन्थ से विचलित कहर दफ्न में समाँ