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9 Aug 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

9- बहरे मुतक़ारिब मुसमन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़उल
वज़्न/मीटर- 122/122/122/12

रुलाकर हमें वो हँसाते रहे
मगर कुछ नया वो सिखाते रहे//1

लम्हे ख़ास इस ज़िंदगी में मिले
हमें आइना जो दिखाते रहे//2

नज़र की हमारी तरफ़ और वो
किसी और पर दिल लुटाते रहे//3

मिटाये अँधेरे घने और हम
लिए हौंसला मुस्क़राते रहे//4

हँसी और ग़म सोचकर अब मिले
बधिर को ग़ज़ल हम सुनाते रहे//5

मिला यश उन्हीं को जहां में सदा
हुआ शौक़ जो गुनगुनाते रहे//6

तिरा शौक़ ‘प्रीतम’ बड़ा हो गया
लगी आग तुम वो बुझाते रहे//7

आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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