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4 Aug 2021 · 2 min read

हिंदी व डोगरी की चहेती लेखिका पद्मा सचदेव का निधन

अत्यन्त दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि हिंदी व डोगरी की जानी-मानी सबकी चहेती लेखिका पद्मा सचदेव का आज सुबह तड़के कार्डिक अरेस्ट के कारण मुंबई में निधन हो गया। वह 81 वर्ष की थी। पद्मा जी का जन्म जम्मू के पुरमंडल गांव में 17 अप्रैल, 1940 ई. को हुआ था। पंद्रह वर्ष की उम्र में उनकी पहली कविता प्रकाशित हुई। उनके पिता प्रो॰ जयदेव शर्मा हिन्दी और संस्कृत भाषा के प्रकांड पंडित थे, जो आज़ादी के वक़्त 1947 ई. में भारत-पाक विभाजन के दौरान हुए दंगों में मारे गए थे। पद्मा जी अपने चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। ‘सिंह बंधू’ नाम से प्रचलित सांगीतिक जोड़ी के गायक ‘सुरिंदर सिंह’ से उनकी शादी 1966 ई. में हुई थी।

पद्मा जी, साहित्य अकादमी एवं अन्य कई सम्मानों से सम्मानित थीं। पद्मा जी को “मेरी कविता, मेरे गीत” के लिए 1971 ई. में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ था। उनको वर्ष 2001 ई. में पद्मश्री और वर्ष 2007–2008 ई.में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा कबीर सम्मान प्रदान किया गया। उनकी डोगरी भाषा में लिखी कृति “चित्त चेते” के लिए साल 2016 ई. में उन्हें सरस्वती सम्मान से सम्मानित किया गया, यह उनकी आत्मकथात्मक रचना है। “तेरी बातें ही सुनाने आए” उनकी डोगरी रुबाइयों का संग्रह है। इन रुबाइयों में लौकिकता और पारलौकिकता के संकेत भी देखे जा सकते हैं।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ रहीं:—”नौशीन” (प्रकाशक: किताबघर, वर्ष 1995); “मैं कहती हूँ आखिन देखि” (यात्रा वृत्तांत) [प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ, वर्ष 1995]; “भाई को नही धनंजय” (प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ, वर्ष 1999); अमराई. (राजकमल प्रकाशन, वर्ष 2000); “जम्मू जो कभी सहारा था” (उपन्यास) [भारतीय ज्ञानपीठ, वर्ष 2003); इन के अलावा “तवी ते चन्हान”, “नेहरियाँ गलियाँ”, “पोता पोता निम्बल”, “उत्तरबैहनी”, “तैथियाँ”, “गोद भरी” तथा हिन्दी में एक विशिष्ठ उपन्यास “अब न बनेगी देहरी” इत्यादि।

उन्होंने कुछ हिन्दी फ़िल्मों के लिए गीत भी रचे थे। जिनमें “ये नीर कहाँ से बरसे हैं” (फ़िल्म: प्रेम परवत, संगीतकार: जयदेव; गायिका: लता मंगेशकर); “मेरा छोटा सा घरबार” (फ़िल्म: प्रेम परवत, संगीतकार: जयदेव; गायिका: लता मंगेशकर) “सोना रे तुझे कैसे” (फ़िल्म: अनकही देखी, गायक: मुहम्मद रफ़ी); जीने न मरने दे” (फ़िल्म: अनकही देखी, गायिका: सुलक्षणा पण्डित) बेहद कर्णप्रिय रहे।

उत्तरांचली साहित्य संस्थान, पद्मा जी को अपनी भाव भीनी श्रृद्धांजलि अर्पित करता है व ईश्वर से उनकी दिवन्गत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करता है। ॐ शान्ति।

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