Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
4 Aug 2021 · 2 min read

सुहाना बचपन

जब नासमझ कहता था, ये ज़माना। 4/8/2021
पर ठीक था उसमें भी प्यार था
लड़ते झगड़ते थे हर रोज, फिर भी अपनापन था
पर ना जाने क्यों हो गए इतने बड़े
हाय कितना सुहाना बचपन था ।।

न हसनें कि कोई वजह थी
न रोनें का कोई बहाना था
मागती तो मां पानी में चांद दे- देती
पर येसी न कोई जिद थी
गलती पर पहले डांटना,
फिर रोने पर मुस्कुराकर चुप कराना,
कितना खूबसूरत वो लम्हा था, वो पल था,
पर ना जाने क्यों हो गए इतने बड़े
हाय कितना सुहाना बचपन था।।

हो जाऊं फिर मैं उतनी छोटी,
ऎसा तो अब मुमकिन नहीं,
पर तू चूम कर मेरा माथा वो लम्हात दे- दे,
वो याद दे- दे
जहां मेरे चलने पर होती थी मेरी पायलों कि छन – छन
मां वो तेरा ही आंगन था।
पर ना जाने क्यों हो गए इतने बड़े
हाय कितना सुहाना बचपन था।।

वो तेरा रूठना रूठ कर हमको हि मानना,
याद आता है,
लोरी गाकर गोद में सुलाना, सारी रात जागता है
तेरे आंचल से अब हूं जुदा ,
ये तो है जिंदगी की कशमकश,
पर ना जाने क्यों हो गए इतने बड़े
हाय कितना सुहाना था बचपन ।।

आज सबकुछ है अपना पर कोई अपना नहीं
आंखों में पैसों की चमक , कोई सपना नहीं
गिर कर संभलना संभल कर चलना , मां तूने सिखाया
कर जाउंगी तेरी दहलीज एक रोज मै पार
ये दर्द तेरे दिल में दफन था
पर न जाने क्यों हो गए इतने बड़े
हाय कितना सुहाना बचपन था ।।@

✍️ रश्मि गुप्ता@ ray’s Gupta

Loading...