प्रेम की परिभाषा
जो ये कहते हैं कि
प्रेम में
उन्होंने
किसी को
अपना दिल दिया है
उन्होंने अपनी
भावनाएं ,
इच्छाएं ,
कर्तव्य
किसी के प्रति
समर्पित कर दिए है
अपनी नींद,
ख्वाब ,
पसंद ,
पहचान
तक किसी पर
कुर्बान कर दी है
क्या वो
सच कहते है
क्या वे सच्चे हैं।
नहीं…….
मैं नहीं मानता
ऐसे किसी भी
कुतर्क को
जो यह बताता है
कि भावनाएं
और कर्तव्य भी
किसी पर समर्पित होते हैं
ख्वाब,
नींद,
पसंद पर भी
किसी और का
अधिकार हो सकता है
मैं बिल्कुल
इसके विरुद्ध हूं
मैं मानता हूं
कि प्रेम में
समर्पण ,
दान ,
कुर्बानी
यह केवल
लफ्बाजी है
प्रेम
प्रेम तो
वह पवित्र एहसास है
जिसमें कोई भी
स्वयं की
अपूर्णता को
हममें पूर्ण पाता है
वह स्वतः ही
हमारे जज्बातों को
महसूस करता है
हमारी भावनाएं
उसे अपनी सी लगती हैं
वह स्वयं
अपनी नींद को
त्याग कर
हमारे ख्वाब में
जगने को
प्रेरित होता है
और शायद यही
प्रेम की परिभाषा भी है।।