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3 Aug 2021 · 1 min read

--@ जरा संभल के चल @--

जिन्दा रहना है अगर
तो जरा बन्दे संभल,
फिर से मौत मंडरा रही
जरा तू संभल के चल !!

नित नई बिमारी आ रही
सब के लिए मंडरा रही
फसना न इस के तू जाल में
देख और संभल के चल !!

आफत का यह बुरा समां है
होना नही किसी का भला है
जिन्दगी है रब के हाथ
फिर भी संभल के चल !!

कर बंदगी दिन रात उस की
जीवन बिता ले सादगी से
मत बन कठपुतली किसी के हाथ की
कदम कदम संभल के चल !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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