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29 Jul 2021 · 1 min read

मेरी तन्हाई

यह तन्हाई कैसी है मेरे यार, इसमें भी कानों में गूंज सुनाई पड़ती है….

सपनों में तो लगी थी आग मेरे , मगर जिंदगी आज भी सुलग रही है….

अब इन आंखों के आंसुओं को तो बहने दे, इस तनहाई में…

के इस सुलग रही आग को , आंखों के पानी से बुझा लेने दे….

सपनों में तो लगी थी आग मेरे, कहीं अब मैं भी राख ना हो जाऊं…

चुप थी, है और रहना,

यही चाहता हूं मैं तुझसे….

कहीं तेरे लफ्जों से मेरी राख में भी आग न लग जाए…..

उमेंद्र कुमार

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