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25 Jul 2021 · 1 min read

दिल में कुछ रोज़

दिल में कुछ रोज़ अभी दर्द का आलम तो रहे
अपनी आँखों में भी बरसात का मौसम तो रहे

ज़ख़्म यह सोचकर भरने नहीं देता हूँ कभी
ज़िन्दगी तुझसे कोई राब्ता क़ायम तो रहे

फूल कैसे नहीं निखरेगा बताएं तो जनाब
पंखुरी पंखुरी बिखरी हुई शबनम तो रहे

फ़ासले ख़ुद ही सिमट जायेंगे रफ़्ता रफ़्ता
आपके साथ हमारा अजी संगम तो रहे

हम भी रखते हैं अना की बड़ी जागीर ‘असीम’
साहिब-ए-वक़्त का लहरा रहा परचम, तो रहे
© शैलेन्द्र ‘असीम’

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