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23 Jul 2021 · 1 min read

याद

आज फिर उम्र के इस पड़ाव पर बचपन याद आ गया
याद आ गया वो स्कूल का पहला दिन याद आ गया
क्लास की खुली खिड़की से में जार जार रो रहा था मैं
टीचर का मेरे सर को सहलाना लो फिर याद आ गया

बाप का प्यार और मां का दुलारना याद आ गया
बड़ी बहन का यूँ खाने को पुकारना याद आ गया
याद आ गया फिर वो गलियों में दौड़ना भागना
छिपना छिपाना और जीत पर चिल्लाना याद आ गया

वो गुजरा बचपन भी हंस खेल कर जीते थे हम
होंठो से लगा ओक पानी गली के नल से पीते थे हम
पानी भी लगता था मानो मीठा शर्बत हो जैसे
खेलते हुए खाना खाते हुए खेलना ऐसा एक बचपन जीते थे हम

वीर कुमार जैन
23 जुलाई 2021
1963 की मधुर यादें

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