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18 Jul 2021 · 1 min read

साजिशें ही साजिशें….

साजिशें ही साजिशें…

साजिशें ही साजिशें।
रंजिशें ही रंजिशें।

चैन- सुकून लीलतीं,
रंजिशें औ साजिशें।

लग रहीं हर काम में,
तिकड़म औ सिफारिशें।

पूरी हों तो कैसे,
आसमां – सी ख्वाहिशें।

बढ़ा-चढ़ा चमक-दमक,
लगा रहे नुमाइशें।

झेलतीं जुल्मोसितम,
मर रही हैं ख्वाहिशें।

कहाँ क्या गुल खिलाए,
ये नयी पैदाइशें।

बंद पन्नों में पड़ीं,
अनसुनी -सी नालिशें।

न जाने बरसें कहाँ,
खुदा तिरी नवाज़िशें।

सभी सुखी रहें यहाँ,
दिल की ये गुजारिशें।

बरसें सबके आँगन,
रहमतों की बारिशें।

– © डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)
“सृजन-सुगंध” से

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