भाड़े का मकान
ख़ुद को अमर समझ बैठा
तू किस क़दर नादान है बे!
मुझे दिख रहा साफ-साफ
तेरा भावी अंज़ाम है बे!!
जनता की गाढ़ी कमाई
फूंक रहा है तू जिस पर
तेरे बाप का घर नहीं,
वह भाड़े का मकान है बे!!
Shekhar Chandra Mitra
#coronavirusindia
#PoliticalPoems