Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Jul 2021 · 1 min read

समय चक्र

समय चक्र निरंतर चलता जाए ,
यह रोकने से भी ना रुकने पाए ।

चाहे करलें जितने भी प्रयास हम,
यह हमारे हाथ बिल्कुल न आए ।

उम्र गुजरी सु समय की प्रतीक्षा में,
आलस्य में शेष अवसर भी गंवाए।

बचपन औ जवानी गुज़ारी मस्ती में,
अब बुढ़ापा आया तो बहुत पछताए ।

ना स्वार्थ पाया ना ही परमार्थ पाया ,
दुविधा में ना माया मिली न राम पाए।

समय का चक्र अपनी रफ्तार में है,
ऐसे में कौन सी आशा पूरी हो पाए ?

अरमान पाल रखे है हमने बेशुमार ,
मगर समय हमसे छल करता जाए ।

मालूम है हमें कोई मुकम्मल न होंगे ,
इंसा जन्म मरण चक्र में फंसता जाए।

चक्र चाहे कोई हो जीवन पर भारी है ,
मनुष्य जीवन कैसे इनसे मुक्ति पाए ?

जीवन चक्र बेशक थम जाए चलते हुए ,
मगर समय अपनी गति से चलता जाए ।

कई युगों से चल रहा है निरंतर समय चक्र ,
कौन चला रहा है कोई जान न इसे पाए ।

शायद विधाता के हाथ में है इसका हत्था,
वही अपने नियम से इसे चलता जाए ।

क्या प्रलय ही रोक सकेगी इसकी रफ्तार ?
या पुनः सृजन हेतु यह अग्रसर हो जाए।

सृष्टि का नियम ही है बस चलते जाना ,
गर रुक गए तो क्या मृत्यु न कहलाए ?

समय चक्र दूसरा नाम परिवर्तन भी है ,
एकसार जीवन भला किसे भाए !

परिवर्तन संसार का नियम है प्यारे मित्रो !,
आदर्श इंसान वही जो साथ चलता जाए।बी

Loading...