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11 Jul 2021 · 2 min read

नीजि संस्थान

आज आधुनिकता में मनुष्य निसर्ग स्वभाव व्यवाहारिकता से दूर होते जा रहा है,
यही हर्ष और गौरव के साथ हुआ,
शहरी परिवेश के पर्व और उत्सव और मौज मस्ती
तरह तरह के ईमान बेचकर न जाने कैसे कैसे आयोजन हो रहे है. चकाचौंध में खो जाते हैं.
आजीविका इतनी जटिल हो गई,
घर में माता-पिता दोनों को काम करके खर्च पूरा करने पड़ते हैं, ताकि बच्चों को अच्छे संस्कार वा शिक्षा दिलवा सके, यहीं जिम्मेदारी में त्रुटि रह जाती है,
निवास-स्थान से दूर नामी गिरामी संस्था में दाखिला.
सुबह शाम के लिए स्कूल बस तक लद्दे हुए स्कूल बैग जैसे बच्चे नहीं माता-पिता को दोबारा पढना पड रहा हो.
बच्चों को अपाहिज बनाता है.
आते ही घण्टे भर बाद ट्यूशन और महीने में एक बार पी.टी.एम जिसमें रटे रटाये वाक्य.
आपका बच्चा बिल्कुल नहीं चल पा रहा है.
शरारतें भी कुछ ज्यादा कर रहा है.
हिंदी तो इसे बिल्कुल नहीं आती. आदि इत्यादि.

हमारा एक ही आग्रह होता है, कक्षा के अध्यापक से हम बच्चे को नियमित स्कूल भेज रहे हैं और समय पर फीस
ये सब आपकी जिम्मेदारी है,
तब जवाब मिलता है.
बच्चा स्कूल में सिर्फ़ छ: घण्टे रहता है.
बाकी समय आपके पास.

बात तो ठीक है.
आठ घण्टे स्कूल में दो घण्टे स्कूल बस में आठ घण्टे सोने के बचे छ: घण्टे उसमें ट्यूशन भी स्कूल की वजह से लगाना पडता है.
बच्चे खुद से अध्ययन, अध्यापन कार्य,
विषय के पुनरावलोकन कब करेगा.

नतीजन हर्ष और गौरव के मनोबल में गिरावट आने लगी
वह छोटे छोटे काम सहारे लेकर करने लगे. उनमें जैसे जज्बात है ही नहीं, सर्वांगीण विकास का अभाव स्पष्ट झलक रहा था.

ऐसे स्कूलों में चुनिंदा बच्चों को मौका मिलता है.
और उन्हीं के दम पर, ये संस्थान चलते रहते है.
आत्मनिरीक्षण के अभाव में बच्चों के मनोबल वाला क्षेत्र अछूता रह जाता है.

मनोबल के अभाव में वे विभिन्न मानसिक तनाव वा बिमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं.,तथ्य वा चीजों को छुपाना
मायूसी, मानसिक अवसाद, दोगला चरित्र, हठ करके चीजों को मनवाना आदि इत्यादि.

आखिर इन बच्चों का मनोबल कैसे लौट सकता है,
उनके बुद्धि और मानसिक स्तर का आकलन करके रूचि खोजकर, उनमें जज्बात भरकर,
तुम कर सकते हो,
और कर ही लोगे.
शाबाश !!!

उन्होंने खुद अपने मकसद तय किए.
और योजना बनाकर, उनको प्रारूप दिया.
उनमें मनोबल जाग गया और जिम्मेदारी संभाल ली.

माता पिता से उनको ये सुनकर अच्छा लगता है.
वैल डन गौरव
बैल डन हर्ष…
ये सब मनोबल के कारण हो पाया.

डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस

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