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11 Jul 2021 · 1 min read

अधिकारी

अच्छे से पहचानो, मैं बन्दा सरकारी हूँ
मैं तो अधिकारी हूँ, हाँ! मैं अधिकारी हूँ

रिश्वत मेरी दासी है
घोटाला मेरा चेला
मेरे आगे पानी भरता
भद्रजनों का रेला

सौ सौ बेईमानों पर तनहा मैं भारी हूँ

जिसने मुझको जन्म दिया है
जिसने मुझे पढ़ाया
कुर्सी-पद पाते ही मैंने
उन सबको बिसराया

पी कर खून गरीबों का, भरता किलकारी हूँ

तस्कर, चोर, लुटेरों से है
जन्म जन्म की यारी
आ कर भेंट चढ़ाते मुझको
सारे भ्रष्टाचारी

घाटा नहीं उठाता जो, ऐसा व्यापारी हूँ

नेता-अभिनेता की गाड़ी
मुझसे ही तो चलती
मेरे बिना अदब की महफ़िल
सूनी सूनी लगती

उद्घाटन की शोभा हूँ, मन की लाचारी हूँ

अपने साहब के आगे मैं
जी सर जी सर कहता
भोली जनता को देखूँ तो
खूब अकड़ कर चलता

हर अवसर के लायक मैं तन इच्छाधारी हूँ

एक बार भी जो ‘असीम’
पड़ जाए मेरे पाले
ख़ुद वो जा कर दीवारों से
सर अपना टकरा ले

छूटे ना जीवन भर जो, ऐसी बीमारी हूँ

©️ शैलेन्द्र ‘असीम’

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