Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 Jul 2021 · 1 min read

मैं दिया हूँ

मैं दिया हूँ
अपने गंतव्य की ओर मैं चल दिया हूँ
मैं दिया हूँ
मेरा उद्देश्य तो
अंधेरा होते ही
खुद जलकर प्रकाश फैलाना
दूसरों को राह दिखाना
आजीवन दूसरों का मार्ग प्रकाशित करते करते
अंत में स्वयं बुझ जाना
फिर भी मेरे अंतर की पीड़ा को
किसी ने नहीं पहचाना
लगता है मैं अपनों से ही छल गया हूँ
मैं दिया हूँ
पैर में कांटा न लगे
मनुष्य रास्ता न भटके
इसके लिये मेरे प्रकाश की
और मेरे लिये तेल की जरूरत है
फिर भी चलते समय कोई तेल का नाम ले ले
तो वह अशुभ मुहूरत है
लगता है मैं अपनी ही कालिख से
कुछ गलत लिख गया हूँ
मैं दिया हूँ
मेरी आत्मकथा कल्पित ही सही
पर सही है
हर व्यक्ति को आगे का रास्ता देखने के लिए
मेरी ही लौ जल रही है
मैं अपनी ही लौ में अपने प्राण की
आहुति देकर जल रहा हूँ
मैं दिया हूँ
अपने गंतव्य की ओर मैं चल दिया हूँ
मैं दिया हूँ
़़़़़़़़़ अशोक मिश्र

Loading...