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29 Jun 2021 · 1 min read

"तन्हाई का मंज़र"

“तन्हाई का मंज़र”

तनहा कल भी थे,
तनहा आज भी हैं।
ना कल में कुछ बदला,
और ना आज में कुछ खास हैं।

घेरे रखा हैं तन्हाई के आलम ने,
एक साथ की तलाश रहती हैं।
गुज़रते थे जो वक़्त कभी लोगों के साथ में,
आज अकेले ही उससे पहचान होती हैं।

हाँ ठीक हैं हम,
दिखावे के दुनिया से दूर हैं हम।
बड़ी मुश्किल तो होती हैं अकेले जीना,
मगर अपने आप में खुश हैं हम।

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