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24 Jun 2021 · 1 min read

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं…..
⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
कितने लाचार होते हैं वो
झेलके कितनी उलझन और दुष्वारियाॅं
सपने साकार करते हैं वो ।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
फिर भी सबका ख्याल रखते हैं वो
बिखेरके मुस्कान और सुनाके कहानियाॅं
बच्चों के चतुर्दिक ज्ञान का विकास करते हैं वो।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
दूर-दराज से कमा कर लाते हैं वो
दूर करके परिवार की सारी परेशानियाॅं
पारिवारिक जीवन खुशहाल कर जाते हैं वो।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
घर की सारी जरूरतें पूरी करते हैं वो
बच्चे जब करते कभी कुछ मनमानियाॅं
बड़ी चतुराई से इलाज उसका करते हैं वो।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
दूर रहके भी परिवार के लिए चिंतित होते हैं वो
यदा – कदा ही होतीं चेहरे पे उनकी खुशियाॅं
फिर भी काम में इतने लीन सदैव रहते हैं वो ।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
जैसे तैसे जीवन निर्वाह करते हैं वो
भले सताती उन्हें परिवार से कुछ दूरियाॅं
पर चेहरे पे शिकन न कभी आने देते हैं वो ।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं
उम्र को भी खुद पे न हावी होने देते हैं वो
ज़िंदगी की ढलान पे जब होतीं चेहरे पे झुर्रियाॅं
फिर भी कार्य के प्रति अति समर्पण दिखलाते हैं वो।
परिवार को सॅंवारने में अनूठा योगदान दे जाते हैं वो।

कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं….
कैसे बताऊं पिता की मजबूरियाॅं….

स्वरचित एवं मौलिक ।

अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : २४/०६/२०२१.
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